Sanskrit Shlokas With Meaning in Hindi: हमारे देश में सभी भाषाओं का अपना अलग अलग महत्व माना जाता है। ऐसे में सभी भाषाओं में से एक भाषा संस्कृत भी शामिल है। जो कि काफी शुद्ध और पवित्र मानी जाती है। संस्कृत भाषा का इतना अधिक पवित्र Sanskrit ke slokas के वजह से माना जाता है। साथ ही आपको यह भी बता दूं कि संस्कृत भाषा सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है। हमारे देश में संस्कृत भाषा को देवी देवताओं के भाषाओं से तुलना की जाती है।
आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि पहले के समय में लोग Sanskrit Shlok के माध्यम से ही एक दूसरे से बात किया करते थे। तो क्या आप भी एक भारतीय हिंदू धर्म से ताल्लुक रखने वालों में से एक है, यदि हां तो आपको भी संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlokas) का ज्ञान होना जरूरी होता है। जी हां एक हिंदी धर्म के व्यक्ति को संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlokas) का थोड़ा भी ज्ञान न हो यह अच्छी बात नहीं होती है।
क्योंकि सरल शब्दों में समझा जाए तो एक मनुष्य जाति के लिए संस्कृत हर किसी के जीवन का एक अहम भाग माना जा सकता है। साथ ही आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि पुराने समय में कई ऋषि मुनियों ने बेहतरीन बेहतरीन श्लोक संस्कृत भाषा में लिखा है। तो क्या आपको संस्कृत भाषा में श्लोक का थोड़ा बहुत भी ज्ञान नहीं है, यदि नहीं है, तो कोई बात नहीं तो आपको हमारे लेख के अंत तक बने रहने की आवश्यकता होगी।
क्योंकि आज के लेख में मैं आप सभी को 200+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित (Sanskrit Shlok With Meaning in Hindi) जानकारी साझा करने वाला हूं। आज के लेख में आपको बहुत सारी संस्कृत श्लोक का ज्ञान प्राप्त होने वाला है और वो भी अर्थ के साथ। इसलिए आप सभी से दरख्वास है कि आप हमारे लेख को आधा अधूरा ना पढ़ें। बल्कि आप हमारे पोस्ट के अंत तक ध्यान पूर्वक पढ़ें।
शुभ प्रभात संस्कृत श्लोक एवं हिंदी अर्थ – Good Morning Sanskrit Shlokas
ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
अर्थात् : ऊपर दिए गए श्लोक का अर्थ है कि गुरु ही ब्रह्मा का रूप है, गुरु ही विष्णु का रूप है और गुरु ही प्रभु शिव है। इसके साथ ही श्लोक में यह भी कहा है कि गुरु ही परब्रह्मा है और ऐसे गुरु को मेरा नमन।
भावार्थ : हे यजमानों के स्वामी, कवियों के कवि, सबसे प्रसिद्ध, आध्यात्मिक ज्ञान के सर्वोच्च राजा, आध्यात्मिक ज्ञान के भगवान। हम आपको पुकारते हैं, कृपा करके हमारी बात सुनें और हमारे स्थान में निवास करें.
भावार्थ: योगी निरन्तर ओंकार का ध्यान करते हैं, जो बिन्दुओं से बना है। ओंकार को नमस्कार, जो सभी इच्छाओं और मुक्ति को प्रदान करता है। ॥
भावार्थ : उन भगवान गणेश को नमस्कार है जिनके सिर हाथी है, जिनकी भूतों और अन्य लोगों द्वारा पूजा की जाती है, जो अपने पसंदीदा सेब और गुलाब खाते हैं, मैं उमा के पुत्र, भगवान विघ्नेश्वर के चरण कमलों को प्रणाम करता हूं, जो सभी दुखों का नाश करते हैं।
अर्थात् : उपर दिए गए श्लोक का अर्थ है कि मैं दिए के प्रकाश को नमन करता हूं जो स्वास्थ्य, समृद्धि और शुभता हमारे जीवन में लाता है, जो अनैतिक भावनाओं को खत्म करता है। इसका अर्थ यह भी है कि मैं ऐसे प्रकाश को बार बार प्रणाम करता हूं।
ऊपर दिए गए श्लोक का अर्थ यह हुआ कि हर किसी को हमेशा सत्य ही बोलना चाहिए, प्रिय बोलना चाहिए, सत्य लेकिन अप्रिय नही बोलना चाहिए। प्रिय बोलिए लेकिन असत्य नहीं यही सनातन धर्म माना जाता है।
इस श्लोक का अर्थ कुछ इस प्रकार है कि इंसानों को ज्ञान हासिल करने की कोशिश हमेशा करते रहना चाहिए। क्योंकि निर्धन होते हुए भी गुणवान होना अच्छी बात होती है। इसके विपरित देखा जाए तो जो धनवान गुणों से रहित है उन्हें सही नहीं माना जाता है। इसके साथ ही इस श्लोक में यह भी कहा गया है कि विश्व में यदि लोगो सेभाने सम्मान हासिल करना है, तो गुण प्राप्त होना अति आवश्यक है।
ऊपर दिए गए श्लोक का अर्थ है कि आने वाले दिनों में क्या होने वाला है ये किसी को नहीं पता है। इसलिए हर किसी को अपना कार्य आज ही कर लेना चाहिए। यही बुद्धिमान व्यक्तियों की पहचान होती है।
भावार्थ: उन्होंने सफेद कपड़े पहने हैं और उनकी चार भुजाएँ हैं, जो चंद्रमा के रंग की हैं। सभी बाधाओं को दूर करने के लिए व्यक्ति को भगवान के प्रसन्न मुख का ध्यान करना चाहिए।
ऊपर दी गई श्लोक का अर्थ यह है कि दुर्जन की दोस्ती पहले तो काफी अच्छी होती है और क्रमशः कम होने वाली भी होती हैं। सज्जन लोगों की दोस्ती शुरुआत में कम और कुछ समय बाद में बढ़ने वाली होती है। इस तरह से देखा जाए तो दिन के पूर्वार्ध और परार्ध में अलग-अलग दिखने वाली छाया की तरह ही दुर्जन और सज्जन लोगों की दोस्ती होती है।
ऊपर दिए गए श्लोक का अर्थ है कि जिस तरह से एक चक्के के जरिए रथ नहीं चल सकता ठीक उसी प्रकार बगैर पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकते है।
ऊपर दिए गए श्लोक का अर्थ होता है कि जन्म और मृत्यु तो संसार का एक ऐसा नियम माना जाता है जिसे कोई भी नहीं रोक सकता है। यह चक्र की तरह चलता ही रहता हैं। परंतु जन्म लेना उसी के लिए सार्थक होता है जिसके जन्म से कुल ks विकाश हो।
ऊपर दिए गए श्लोक के अनुसार, दुष्ट प्रवृत्ति वाले लोग जब तक दूसरों की निंदा नहीं करते है तब तक उन्हें आनंद नहीं आता है। जैसे कि कौवा जो सब रसों का तो भोग करता ही है लेकिन भाग करने के बाद भी वे गंदगी किए बगैर रह नहीं सकते।
ऊपर दिए गए श्लोक का अर्थ है कि वाद-विवाद, माँगना, धन के लिये सम्बन्ध बनाना, ऋण लेना, अधिक बोलना, आगे निकलने की चाह रखना – यह सब दोस्ती के टूटने की वजह बनती हैं इसलिए हमेशा व्यक्ति को उनसे दूरी बना कर रखने की ही आवश्यकता होती है।
जीवन पर संस्कृत श्लोक एवं हिंदी अर्थ – Sanskrit Shlokas on Life
इस श्लोक का अर्थ है कि जीवो पर व्यक्तियों को हमेशा करुणा और दया की भावना बनाए रखने की आवश्यकता होती है और उनसे दोस्ती पूर्वक व्यवहार करना हर व्यक्ति को चाहिए।
ऊपर दिए गए श्लोक के अनुसार किसी भी जीव पर हमेशा दया और करुणा की भावना बनाए रखने की आवश्यकता होगी। आपको हमेशा उनके साथ मित्रता पूर्वक व्यवहार बनाए रखने की जरूरत होगी।
इस श्लोक का अर्थ चाहे धनी हो या निर्धन, दुःखी हो या सुखी, निर्दोष हो या सदोष – दोस्त ही किसी व्यक्ति का सच्चा सहारा बन सकता है।
जो लोग पढ़ते है, लिखते है, देखते है, सवाल पूछते है और बुद्धिमानों का आश्रय लेता है, उसकी बुद्धि उसी प्रकार बढ़ती जा रही है जैसे कि सूर्य किरणों से कमल की पंखुड़ियाँ बढ़ती है।
जन्म और मृत्यु विश्व का नियम है यह चक्र चलता रहता है लेकिन जन्म लेना उसी का सार्थक है जिसके जन्म से कुल का विकास होता हो।
सभी कीमती रत्नों से कीमती एक जीवन होता है जिसका एक क्षण भी वापस नहीं पाया जा सकता है। इसलिए इसे फालतू के कामों में खर्च करना बहुत बड़ी गलती है।
लेना, देना, खाना, खिलाना, रहस्य बताना और उन्हें सुनना ये सभी 6 प्रेम के सिम्टम होते है।
जिस कार्य को कल करना है उसे आज और जो कार्य शाम के वक्त करना हो तो उसे सुबह के वक्त ही पूर्ण कर लेना चाहिए। क्योंकि मौत कभी यह नहीं देखती कि इसका कार्य अभी भी बाकी है।
ऊपर दिए गए श्लोक का अर्थ यह है कि घोड़े की शोभा उसके वेग से होती है और हाथी की शोभा उसकी मदमस्त चाल से होती है। नारियों की शोभा उनकी विभिन्न कामों में दक्षता के कारण और पुरुषों की उनकी उद्योगशीलता की वजह होती है।
यदि कोई अपरिचित व्यक्ति आपकी मदद करें तो उसको अपने परिवार के सदस्य की तरह ही महत्व दें और अपने परिवार का सदस्य ही आपको नुकसान देना शुरू हो जाये तो उसे महत्व देना बंद कर दें। ठीक उसी तरह जैसे शरीर के किसी अंग में कोई बीमार हो जाये तो वह हमें तकलीफ पहुंचती है। जबकि जंगल में उगी हुई औषधी हमारे लिए लाभकारी होती है।
इस श्लोक का अर्थ यह है कि कानों में कुंडल पहन लेने से चेहरे की शोभा नहीं बढ़ती, लेकिन वही पर अगर ज्ञान की बातें सुनते है तो उससे शोभा बढ़ती है। हाथों की सुन्दरता कंगन पहनने से नहीं होती बल्कि दान देने से होती है। सज्जनों का शरीर भी चन्दन से नहीं बल्कि परहित में किये गये कार्यों से शोभायमान होता है।
जिस कार्य को कल करना है उसे आज और जो कार्य को शाम के वक्त पर करना हो तो उसे भोर के वक्त ही पूर्ण कर लेना चाहिए। क्योंकि मृत्यु किसी को पुछ कर नहीं बल्कि कभी यह नहीं देख कर आती कि इसका काम अभी भी बचा हुआ है।
जो लोग अलग अलग देशों में सफर करते है और विद्वानों से सम्बन्ध रखते है। उन लोगों की बुध्दि उसी प्रकार होती है जैसे तेल की एक बूंद पूरे पानी में फिर जाती है।
इसका अर्थ यह है कि विद्या हमें विनम्रता प्रदान करती है। विनम्रता से योग्यता प्राप्त होती है व योग्यता से हमें धन मिलता है और इस धन से हम धर्म के काम करते है और सुखी रहते है।
इस श्लोक का अर्थ यह है कि ऐ हंस, यदि तुम दूध और पानी में अंतर करना छोड़ दोगे तो तुम्हारे कुलव्रत का पालन इस दुनिया मे कौन करेगा। अगर बुद्धिमान लोग ही इस दुनिया मे अपना कर्त्तव्य त्याग देंगे तो निष्पक्ष व्यवहार कौन करेगा।
ऊपर दिए गए श्लोक का अर्थ है कि भाई अपने भाई से कभी द्वेष नहीं करें, बहन अपनी बहन से द्वेष नहीं करें, समान गति से एक दूसरे का आदर-सम्मान करते हुए परस्पर मिल-जुलकर कर्मों को करने वाले होकर अथवा एकमत से हर एक कामों को करने वाले होकर भद्रभाव से परिपूर्ण होकर संभाषण करें।
संध्या काल में चन्द्रमा दीपक है, प्रभात काल में सूर्य दीपक है, तीनों लोकों में धर्म दीपक है और सुपुत्र कूल का दीपक है।
शोक में, आर्थिक संकट में या प्राणों का संकट होने पर जो अपनी बुद्धि से विचार करते हुए धैर्य धारण करता है। उसे अधिक कष्ट नहीं उठाना पड़ता।
जो विश्वसनीय नहीं है, उस पर कभी भी विश्वास न करें। परन्तु जो विश्वासपात्र है, उस पर भी आंख मूंदकर भरोसा न करें। क्योंकि अधिक विश्वास से भय उत्पन्न होता है। इसलिए बिना उचित परीक्षा लिए किसी पर भी विश्वास न करें।
पराई स्त्री को माता के समान, परद्रव्य को मिट्टी के ढेले के समान और सभी प्राणियों को अपने समान देखता है। वास्तव में उसी का देखना सफल है।
कर्म पर संस्कृत श्लोक – Sanskrit Shlokas on Karma
प्रिय वचन बोलने से सभी जीव प्रसन्न हो जाते हैं। मधुर वचन बोलने से पराया भी अपना हो जाता है। अतः प्रिय वचन बोलने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए।
जो विश्वसनीय नहीं है, उस पर कभी भी विश्वास न करें। परन्तु जो विश्वासपात्र है, उस पर भी आंख मूंदकर भरोसा न करें। क्योंकि अधिक विश्वास से भय उत्पन्न होता है। इसलिए बिना उचित परीक्षा लिए किसी पर भी विश्वास न करें।
जो कभी नाराज होता है, कभी प्रसन्न होता है। इस प्रकार क्षण क्षण में नाराज और प्रसन्न होता रहता है। उस चंचल चित्त पुरुष की प्रसन्नता भी भयंकर है।
दूसरे का अन्न खाने से जिसकी जीभ जल चुकी है। दूसरे का दान लेने से जिसके हाथ जल चुके हैं। दूसरे की स्त्री का चिंतन करने से जिसका मन जक चुका है। उसे पूजा पाठ जप तप से सिद्धि कैसे मिल सकती है।
मनुष्य के सुख- समृद्धि के समय, खान- पान और मान के समय चिकनी चुपड़ी बातें करने वालों की भीड़ लगी रहती है। लेकिन विपत्ति के समय केवल सज्जन पुरुष ही साथ दिखाई पड़ते हैं।
विद्वान पुरुषों के लिए कौन सा कार्य असाध्य है। जो अपने मन, बुद्धि और इंद्रियों को संयमित रखकर उद्यम में लगे रहते हैं। उनके लिए पृथ्वी, आकाश और पाताल में कोई भी ऐसी वस्तु नहीं जो अगम्य, अप्राप्य अथवा अज्ञात हो।
जिनके मन, वचन और शरीर पुन्यरूपी अमृत से भरे हैं। जो अपने उपकारों से तीनों लोकों को तृप्त करते हैं। जो दूसरों के परमाणु जितने छोटे गुणों को भी पर्वत के समान बड़े समझकर अपने हृदय में धारण करते हैं। ऐसे सज्जन संसार में कितने हैं ?
जो देवी शारदा कुंद के फूल, बर्फ के हार और चन्द्रमा के समान श्वेत और श्वेत वस्त्रों से सुशोभित हैं। जिनके हाथों में वीणा का दंड शोभित है। जो श्वेत कमल पर आसीन हैं और जिनकी स्तुति ब्रम्हा, विष्णु, महेश आदि देवता सदा ही किया करते हैं। वे भगवती सरस्वती अज्ञान के अंधकार से मेरी रक्षा करें।
धर्म और न्याय के मार्ग पर चलने वाली की संसार के सभी प्राणी सहायता करते हैं। जबकि अन्याय के मार्ग पर चलने वाले को उसका सगा भाई भी छोड़ देता है।
शरद ऋतु में बादल गरजता तो है लेकिन बरसता नहीं है। जबकि वर्षा ऋतु में वह गरजता नहीं है केवल बरसता है। इसी तरह बड़बोला आदमी कहता बहुत है किंतु करता कुछ नहीं। जबकि सज्जन कहता तो कुछ नहीं, किंतु करता अवश्य है।
प्रिय वचन बोलने से सभी जीव प्रसन्न हो जाते हैं। मधुर वचन बोलने से पराया भी अपना हो जाता है। अतः प्रिय वचन बोलने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए।
प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक एवं हिंदी अर्थ – Inspirational Sanskrit Shlokas
मूर्ख कहता है विष्णाय नमः जोकि अशुद्ध है और ज्ञानी कहता है विष्णवे नमः जो व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध है। लेकिन दोनों का फल एक ही है। क्योंकि भगवान शब्द नहीं भाव देखते हैं।
पराई स्त्री को माता के समान, परद्रव्य को मिट्टी के ढेले के समान और सभी प्राणियों को अपने समान देखता है। वास्तव में उसी का देखना सफल है।
जहां का शासन स्त्री, जुआरी और बालक के हाथ में होता है। वहां के लोग नदी में पत्थर की नाव में बैठने वालों की भांति विवश होकर विपत्ति के समुद्र में डूब जाते हैं।
दिए गए दान का फल इस लोक में यश और मृत्यु के बाद उत्तम लोकों की प्राप्ति है। इसलिए दीनों के निमित्त दान करना चाहिए।
शौर्य पर संस्कृत श्लोक और उसके हिंदी अर्थ
कोई भी काम कड़ी मेहनत के बिना पूरा नहीं किया जा सकता है सिर्फ सोचने भर से कार्य नहीं होते है, उनके लिए प्रयत्न भी करना पड़ता है। कभी भी सोते हुए शेर के मुंह में हिरण खुद नहीं आ जाता उसे शिकार करना पड़ता है।
अतिथि भगवान के समान होता है यदि किसी व्यक्ति के दरवाजे से अतिथि असंतुष्ट होकर चला जाता है तो वह उसके पुण्य ले जाता है और अपने पाप उसे देकर चला जाता है।
किए गए दान का फल इस लोक में किस के रूप में प्राप्त होता है और मृत्यु के बाद उत्तम लोग की प्राप्ति होती है इसलिए दोनों को अपनी दिनचर्या में शामिल करके नियमित रूप से दान करना चाहिए।
जो मनुष्य पढ़ता है, लिखता है, देखता है, प्रश्न पूछता है और बुद्धिमानों का आश्रय लेता है, उसकी बुद्धि उसी प्रकार बढ़ती है जैसे कि सूर्य किरणों से कमल की पंखुड़ियाँ बढ़ती है।
दुष्ट प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों को दूसरों की निंदा किए बिना आनंद नहीं आता है जैसे कौवा सब रसों का भोग करता है परंतु गंदगी भी जाए बिना उससे रहा नहीं जाता है।
शास्त्र पर संस्कृत श्लोक – Sanskrit Shlokas on Shastra
संसार में अनेक शास्त्र, वेद है, बहुत जानने को है लेकिन समय बहुत कम है और विद्या बहुत अधिक है। अतः जो सारभूत है उसका ही सेवन करना चाहिए जैसे हंस जल और दूध में से दूध को ग्रहण कर लेता है।
ऊपर दिए गए आठ गुण मनुष्य को सुशोभित करते है – बुद्धि, अच्छा चरित्र, आत्म-संयम, शास्त्रों का अध्ययन, वीरता, कम बोलना, क्षमता और कृतज्ञता के अनुसार दान।
दुर्जन की मित्रता शुरुआत में बड़ी अच्छी होती है और क्रमशः कम होने वाली होती है। सज्जन व्यक्ति की मित्रता पहले कम और बाद में बढ़ने वाली होती है। इस प्रकार से दिन के पूर्वार्ध और परार्ध में अलग-अलग दिखने वाली छाया के जैसी दुर्जन और सज्जनों व्यक्तियों की मित्रता होती है।
कोई भी काम कड़ी मेहनत के बिना पूरा नहीं किया जा सकता है सिर्फ सोचने भर से कार्य नहीं होते है, उनके लिए प्रयत्न भी करना पड़ता है। कभी भी सोते हुए शेर के मुंह में हिरण खुद नहीं आ जाता उसे शिकार करना पड़ता है।
माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। माता के समान इस विश्व में कोई जीवनदाता नहीं॥
लोगों का प्रेम तभी तक रहता है जब तक उनको कुछ मिलता रहता है। मां का दूध सूख जाने के बाद बछड़ा तक उसका साथ छोड़ देता है।
सभी कीमती रत्नों से कीमती जीवन है जिसका एक क्षण भी वापस नहीं पाया जा सकता है। इसलिए इसे फालतू के कार्यों में खर्च करना बहुत बड़ी गलती है।
माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं।
महाजनों गुरुओं के संपर्क से किस की उन्नति नहीं होती। कमल के पत्ते पर पड़ी पानी की बूंद मोती की तरह चमकती है।
धर्म का सार तत्व यह है कि जो आप को बुरा लगता है वह काम आप दूसरों के लिए भी न करें।
अहंकार पर संस्कृत श्लोक एवं हिंदी अर्थ – Sanskrit Shlokas on Ego
अन्याय या गलत तरीके से कमाया हुआ धन दस वर्षों तक रहता है। लेकिन ग्यारहवें वर्ष वह मूलधन सहित नष्ट हो जाता है।
कल्याण की कामना रखने वाले पुरुष को निद्रा, तंद्रा, भय, क्रोध, आलस्य तथा दीर्घसूत्रता इन छ: दोषों का त्याग कर देना चाहिए।
सत्य, विनय, शास्त्रज्ञान, विद्या, कुलीनता, शील, बल, धन, शूरता और वाक्पटुता ये दस लक्षण स्वर्ग के कारण हैं।
कल्याण की कामना रखने वाले पुरुष को निद्रा, तंद्रा, भय, क्रोध, आलस्य तथा दीर्घसूत्रता इन छ: दोषों का त्याग कर देना चाहिए।
पराई स्त्री को माता के समान, परद्रव्य को मिट्टी के ढेले के समान और सभी प्राणियों को अपने समान देखता है। वास्तव में उसी का देखना सफल है।
भाग्य की कल्पना मूर्ख लोग ही करते हैं। बुद्धिमान लोग तो अपने पुरूषार्थ, कर्म और उद्द्यम के द्वारा उत्तम पद को प्राप्त कर लेते हैं।
प्रिय वचन बोलने से सभी जीव प्रसन्न हो जाते हैं। मधुर वचन बोलने से पराया भी अपना हो जाता है। अतः प्रिय वचन बोलने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए।
देवतालोग चरवाहों की तरह डंडा लेकर पहरा नहीं देते। उन्हें जिसकी रक्षा करनी होती है। उसे वे सद्बुद्धि प्रदान कर देते हैं।
दूसरों के धन का अपहरण, पर स्त्री के साथ संसर्ग और अपने हितैषी मित्रों के प्रति घोर अविश्वास ये तीनों दोष जीवन का नाश करने वाले हैं।
धैर्य, मन पर अंकुश, इन्द्रियसंयम, पवित्रता, दया, मधुर वाणी और मित्र से द्रोह न करना ये सात चीजें लक्ष्मी को बढ़ाने वाली हैं।
शोक में, आर्थिक संकट में या प्राणों का संकट होने पर जो अपनी बुद्धि से विचार करते हुए धैर्य धारण करता है। उसे अधिक कष्ट नहीं उठाना पड़ता।
जो विश्वसनीय नहीं है, उस पर कभी भी विश्वास न करें। परन्तु जो विश्वासपात्र है, उस पर भी आंख मूंदकर भरोसा न करें। क्योंकि अधिक विश्वास से भय उत्पन्न होता है। इसलिए बिना उचित परीक्षा लिए किसी पर भी विश्वास न करें।
बड़े भाई को अपने छोटे भाइयों का पुत्रवत् पालन करना चाहिए। जैसे महर्षि कण्व ने अपने छोटे भाई प्रगाथ का पुत्रवत् पालन पोषण किया था।
देवतालोग चरवाहों की तरह डंडा लेकर पहरा नहीं देते। उन्हें जिसकी रक्षा करनी होती है। उसे वे सद्बुद्धि प्रदान कर देते हैं।
आपको नमस्कार माँ शारदा
( माँ सरस्वती ), हे देवी, हे कश्मीर
में रहने वाली में आपके सामने
प्रतिदिन प्रार्थना करता हूं,
कृपया करके मुझे ज्ञान का दान दें!
बेटा-बेटी (पुत्र-पुत्री) कुपुत्र हो सकते हैं, किन्तु माता कुमाता नहीं हो सकती वो तो ममता की मूरत होती है!
शिष्य अपने जीवन का एक
भाग अपने आचार्य से सीखता है ,
एक भाग अपनी बुद्धि से सीखता है
एक भाग समय से सीखता है तथा एक भाग वह अपने सहपाठियों से सीखता है!
विघ्नेश्वर, वर देनेवाले, देवताओं के प्रिय, लम्बोदर, कलाओं से परिपूर्ण, जगत् का हित करनेवाले, गज के समान मुखवाले और वेद तथा यज्ञ से विभूषित पार्वतीपुत्र को नमस्कार है, हे गणनाथ ! आपको नमस्कार है!
आलसी व्यक्ति के लिए ज्ञान कहाँ हैं,
अज्ञानी मुर्ख के लिए धन (पैसा) कहाँ हैं, गरीब के लिए मित्र (दोस् ) कहाँ होते हैं और दोस्तों के बिना कोई कैसे खुश रह सकता हैं!
वृद्धावस्था एक ऐसी अवस्था होती है
जिसमे पहुँचने के बाद वह सभी मनुष्य की सुंदरता, धैर्य आशा (इच्छा) मृत्यु, धर्म का आचरण, सुख–दुःख, काम, अभिमान, पद-प्रतिष्ठा सब को हर (छीन, नाश) लेती है!
विद्या पर संस्कृत श्लोक एवं हिंदी अर्थ | Sanskrit Shlok on Knowledge
सब द्रव्यों में विद्यारुपी द्रव्य सर्वोत्तम है, क्योंकि वह किसी से हारा नहीं जा सकता उसका मूल्य नहीं हो सकता और उसका कभी नाश नहीं होता।
हे आदिदेव सूर्य (भास्कर)
आपको मेरा प्रणाम, हे दिवाकर
आप मुझ पर प्रसन्न हो, हे दिवाकर
आपको मेरा नमस्कार है,
हे प्रभाकर आपको मेरा नमस्कार है!
जो दूसरों को प्रमाद (नशा, गलत काम ) करने से रोकते हैं, स्वयं निष्पाप रास्ते पर चलते हैं, हित और कल्याण की कामना रखनेवाले को तत्त्वबोध (यथार्थ ज्ञान का बोध) कराते हैं, उन्हें गुरु कहते हैं!
जिनका एक दन्त टुटा हुआ है जिनका शरीर हाथी जैसा विशालकाय है और तेज सूर्य की किरणों की तरह है बलशाली है। उनसे मेरी प्रार्थना है मेरे कार्यों के मध्य आने वाली बाधाओं को सर्वदा दूर करें !
गले में जिसने सर्प धारण किया है, मस्तक पर चंद्रमा सजा हुआ है और जो बाघ की खाल धारण (वस्त्र के रूप में) करता है। वह त्रिलोचन (तीन आँखों वाले ) शिव शंकर है।
अपने धर्म ( कर्त्तव्य ) में लगे रहना ही
तपस्या है। मन को वश में रखना ही दमन है। सुख-दुःख, लाभ-हानि में एकसमान भाव रखना ही क्षमा है। न करने योग्य कार्य को त्याग देना ही लज्जा है!
वृक्ष वायु को शुद्ध करते हैंऔर रोगों को दूर भगाने में सहयोगी होते हैं, इसलिए वृक्षों का रोपण और रक्षण प्राणीमात्र के लिए हितकारी है!
जो लोग पल में तुष्ट (संतुष्ठ) और पल में रुष्ट (दुखी, गुस्सा ) होते हैं। बार बार तुष्ट रुष्ट होते हैं। ऐसे लोग बहुत खतरनाक होते हैं ये भरोसे के लायक नहीं होते हैं!
भविष्य का किसी को पता नहीं,
कल क्या होगा यह कोई नहीं जानता है। इसलिए कल के करने योग्य कार्य को आज कर लेने वाला ही बुद्धिमान है!
जो वस्तु खाने योग्य है और खाने पर आसानी से पच जाए और इसका पाचन शरीर के लिए हितकारी हो ऐश्वर्य की इच्छा करने वाले व्यक्ति को ऐसी वस्तु का ही सेवन करना चाहिए!
जिस मनुष्य की वाणी (बोली) मीठी है, जिसका कार्य परिश्रम (मेहनत) से युक्त है, जिसका धन, दान करने में प्रयुक्त होता है, उसका जीवन ही सफल है!
प्रतिदिन पढ़े जाने वाले संस्कृत श्लोक – Daily sanskrit shlokas
हम उस पूजनीय, ज्ञान का भंडार
ईश्वर का ध्यान करते हैं, जिसने इस
संसार को उत्पन्न किया है। जो हमें
पापों और अज्ञानता से दूर रखता है।
वह ईश्वर हमें हमें सत्य का मार्ग दिखाए
और इस मार्ग पर चलने का आशिर्वाद दे!
हे आदिदेव सूर्य (भास्कर)
आपको मेरा प्रणाम, हे दिवाकर
आप मुझ पर प्रसन्न हो, हे दिवाकर
आपको मेरा नमस्कार है,
हे प्रभाकर आपको मेरा नमस्कार है!
यदि भाग्य ख़राब हो या रुठ जाए तो गुरु सदैव रक्षा करते हैं। यदि गुरु रुठ जाए तो कोई रक्षा नहीं करता। इसलिए इसमें कोई
संदेह नहीं है की गुरु ही सच्चा रक्षक है, गुरु ही रक्षक है, गुरु ही रक्षक है!
शुद्ध तीर्थ में सुबह ही स्नान करना चाहिए। यह मलपूर्ण शरीर शुद्ध तीर्थ में स्नान करने से शुद्ध होता है। प्रातः काल स्नान करने वाले के पास भूत प्रेत आदि दुष्ट नहीं आते। इस तरह दिखाई देने वाले फल जैसे शरीर की स्वच्छता और न् दिखाई देने वाले फल जैसे पाप नाश तथा पुण्य की प्राप्ति। ये दोनों प्रकार के फल प्रातः स्नान करने वाले को मिलते हैं।
कालिकेय, कपिला, शेषनाग और तक्षक, वासुकी इनका नित्य स्मरण करने वाले को सर्प और किसी भी तरह के विष का डर नहीं होता।
गुरुजनों की सेवा करने से व्यक्ति को स्वर्ग, धन-धान्य, विद्या, पुत्र और सुख कुछ भी दुर्लभ नहीं है।
मूर्खों व्यक्ति को दिया गया उपदेश उनके गुस्से को शांत न करके और बढ़ाता ही है। जैसे सर्पों को दूध पिलाने से उनका विष कम नहीं बल्कि बढ़ता ही है।
बगैर बुलाये ही किसी भी जगह पर चले जाना और बगैर कुछ पूछें बोलना, जिन पर यकीन नहीं किया जा सकता, ऐसे व्यक्तियों पर यकीन करना यह सभी मूर्ख और बुरे लोगों की पहचान हैं।
कोई भी काम खूब मेहनत करनें से ही पूरा होता है, उस काम को केवल सोचनें या इच्छा करनें से वह काम पूर्ण नही होता है, जिस तरह एक सोते हुए सिंह के मुंह में हिरण खुद नहीं आता, उसके लिए सिंह को खुद मेहनत करना पड़ता है।
धर्म पर संस्कृत श्लोक एवं हिंदी अर्थ – Sanskrit Shlokas on Relegions
किसी भी काम को जोश में आ कर या बगैर सोचे समझे नहीं करना चाहिए, क्योंकि विवेक का शून्य होना विपत्तियों को बुलावा देने के बराबर है। जबकि जो लोग सोंच-समझकर काम करता है, ऐसे लोगों को माँ लक्ष्मी स्वयं ही उसका चयन कर लेती है।
जब तक किसी व्यक्ति का काम पूर्ण नहीं होता है तब तक वह दूसरों की तारीफ करते हैं और जैसे ही काम पूर्ण हो जाता है, व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को भूल जाते हैं। यह ठीक उसी प्रकार होता है जैसे-नदी पार करने के बाद नाव का कोई इस्तेमाल नहीं रह जाता है। कहनें का आशय यह है कि अपना स्वार्थ सिद्ध हो जानें पर उस व्यक्ति को भूल जाते है।
ऐसे माता-पिता या अभिभावक जो अपन बच्चों को नहीं पढ़ाते है अर्थात शिक्षा अध्ययन के लिए नहीं भेजते है वह अपनें बच्चों के लिए एक शत्रु के समान है। जिस प्रकार विद्वान व्यक्तियों की सभा में एक निरक्षर व्यक्ति को कभी सम्मान नहीं मिल सकता वह हंसो के बीच एक बगुले की तरह होता है।
जैसे सब जगह विचरनेवाली महान् वायु नित्य ही आकाशमें स्थित रहती है, ऐसे ही सम्पूर्ण प्राणी मुझमें ही स्थित रहते हैं ऐसा तुम मान लो।
इस श्लोक का अर्थ है कि किसी भी व्यक्ति का जो मूल स्वभाव होता है, वह कभी नही बदलता है, चाहे आप उसे कितना भी समझाएं और किनती भी सलाह दे | यह ठीक उसी प्रकार से होता है जैसे पानी को आग में उबालनें पर वह गर्म हो जाता है और खौलनें लगता है परन्तु कुछ समय पश्चात वह अपनी पुरानी अवस्था में आ जाता है।
आठ गुण मनुष्य को सुशोभित करते है – बुद्धि, अच्छा चरित्र, आत्म-संयम, शास्त्रों का अध्ययन, वीरता, कम बोलना, क्षमता और कृतज्ञता के अनुसार दान।
मनुष्य के शरीर में रहने वाला आलस्य ही उनका सबसे बड़ा शत्रु होता है, परिश्रम जैसा दूसरा कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता है।
माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं।
मां से बढ़कर कोई देव नहीं है।
धर्म है क्या? धर्म है दूसरों की भलाई। यही पुण्य है। और अधर्म क्या है? यह है दूसरों को पीड़ा पहुंचाना। यही पाप है।
कहते हैं कि कुल की भलाई के लिए की किसी एक को छोड़ना पड़े तो उसे छोड़ देना चाहिए। गांव की भलाई के लिए यदि किसी एक परिवार का नुकसान हो रहा हो तो उसे सह लेना चाहिए। जनपद के ऊपर आफत आ जाए और वह किसी एक गांव के नुकसान से टल सकती हो तो उसे भी झेल लेना चाहिए। पर अगर खतरा अपने ऊपर आ पड़े तो सारी दुनिया छोड़ देनी चाहिए।
विवेकशील और बुद्धिमान व्यक्ति सदैव ये चेष्ठा करते हैं की वे यथाशक्ति कार्य करें और वे वैसा करते भी हैं तथा किसी वस्तु को तुच्छ समझकर उसकी उपेक्षा नहीं करते, वे ही सच्चे ज्ञानी हैं।
क्षमाशील व्यक्तियों में क्षमा करने का गुण होता है, लेकिन कुछ लोग इसे उसके अवगुण की तरह देखते हैं । यह अनुचित है।
न्याय और मेहनत से कमाए धन के ये दो दुरूपयोग कहे गए हैं- एक, कुपात्र को दान देना और दूसरा, सुपात्र को जरूरत पड़ने पर भी दान न देना।
जो व्यक्ति किसी की बुराई नही करता ,सब पर दया करता है ,दुर्बल का भी विरोध नही करता ,बढ-चढकर नही बोलता ,विवाद को सह लेता है ,वह संसार मे कीर्ति पाता है।
जो व्यक्ति लोक -व्यवहार ,लोकाचार ,समाज मे व्याप्त जातियों और उनके धर्मों को जान लेता है उसे ऊँच-नीच का ज्ञान हो जाता है। वह जहाँ भी जाता है अपने प्रभाव से प्रजा पर अधिकार कर लेता है।
लक्ष्मी न तो प्रचंड ज्ञानियों के पास रहती है, न नितांत मूर्खो के पास। न तो इन्हें ज्ञानयों से लगाव है न मूर्खो से। जैसे बिगड़ैल गाय को कोई-कोई ही वश में कर पाता है, वैसे ही लक्ष्मी भी कहीं-कहीं ही ठहरती हैं।
जो व्यक्ति दान, यज्ञ, देव -स्तुति, मांगलिक कर्म, प्रायश्चित तथा अन्य सांसरिक कार्यों को यथाशक्ति नियमपूर्वक करता है ,देवी-देवता स्वयं उसकी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
जो जल्दबाजी में धर्म ,अर्थ तथा काम का प्रारंभ नहीं करता ,पूछने पर सत्य ही उद् घाटित करता है, मित्र के कहने पर विवाद से बचता है ,अनादर होने पर भी दुःखी नहीं होता। वही सच्चा ज्ञानवान व्यक्ति है।
वीरता पर संस्कृत श्लोक एवं हिंदी अर्थ – Heroism Sanskrit Shlokas
जो किसी कमजोर का अपमान नहीं करता, हमेशा सावधान रहकर बुद्धि-विवेक द्वारा शत्रुओं से निबटता है, बलवानों के साथ जबरन नहीं भिड़ता तथा उचित समय पर शौर्य दिखाता है, वही सच्चा वीर है।
प्रकृति और मनुष्य के बीच का संबंध शाश्वत है। रिश्ता शाश्वत है। जल, वायु, आकाश के सभी तत्व, अग्नि और पृथ्वी वास्तव में धारक हैं और जीवों के पालनहार।
महाभारतके शांतिपर्व में भी कहा गया है कि, प्राणियों के शरीर इन पाँच महाभूतों के मिलने से बनते हैं। श या गति वाय के कारण है। खोखलेपन आकाश का अंश शरीर की गर्मी अग्नि का भाग और रक्त आदि तरल पदार्थ जल के अंश हैं। हड्डी, मांस, आदि कड़े पदार्थ पृथिवी के अंश हैं।
आकाशादि पंचमहाभूत के रजस अंश से अलग-अलग व्यष्टिरूप में क्रमशः वाणी, हाथ, पैर, गुदा और जननेन्द्रिय – ये पांच कर्मेन्द्रियाँ उत्पन्न हुई।
कान, नाक, मुख, हृदय और पेट ये आकाश के तत्त्व हैं।
आकाशादि पंचमहाभूत के उसी रजस अंश से समष्टिरुप में क्रमशः प्राण, अपान , व्यान , उदान और समान पांच प्राणवायु उत्पन्न हुए।
ऊपर दिए गए श्लोक का अर्थ होता है आकाश में तारे देख।
पदार्थगत भौतिक अस्वच्छता स्वच्छ मिट्टी एवं जल के प्रयोग से दूर होती है और नदी अपने प्रवाह से ही शुद्ध हो जाती है। मन में कुविचार रखने वाली स्त्री की शुद्धि रजस्राव में निहित रहती है तो ब्राह्मण की शुद्धि संन्यास में निहित रहती है।
शरीर की शुद्धि जल से होती है। मन की शुद्धि सत्य भाषण से होती है। जीवात्मा की शुचिता के मार्ग विद्या और तप हैं। और बुद्धि की स्वच्छता ज्ञानार्जन से होती है।
सभी शौचों, शुचिताओं, यानी शुद्धियों में धन से संबद्ध शुचिता ही वास्तविक शुद्धि है। मात्र मृदा-जल (मिट्टी एवं पानी) के माध्यम से शुद्धि प्राप्त कर लेने से कोई वास्तविक अर्थ में शुद्ध नहीं हो जाता।
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन। कर्म करने में तेरा अधिकार है। कर्म के फल का अधिकार तेरे पास नहीं है। इसलिए तू कर्मों के फल का हेतु मत हो और न ही कर्म न करने के भाव मन में ला। अतः कर्म कर फल की चिंता मत कर।
अर्थ: जिस देश में हम जन्म लेते हैं वही हमारा देश या जन्म स्थान होता है। एक माँ की तरह, मातृभूमि की पूजा और सम्मान करना चाहिए। उसकी कीर्ति देश के समस्त निवासियों की कीर्ति है। यह उनकी गरिमा से है कि देश के निवासियों को गर्व है।
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FAQ’S Related To Sanskrit ke Shlok
Q1. घमंड से जुड़े संस्कृत के श्लोक क्या है?
मानं हित्वा प्रियो भवति। क्रोधं हित्वा न सोचति।।
कामं हित्वा अर्थवान् भवति। लोभं हित्वा सुखी भवेत्।।
Q2. देशभक्ति पर संस्कृत श्लोक कौन सा है?
यस्मिन् देशे वयं जन्मधारणं कुर्मः स हि अस्माकं देशः जन्मभूमिः वा भवति,
जननी इव जन्मभूमिः पूज्या आदरणीया च भवति।
अस्याः यशः सर्वेषां देशवसिनां यशः भवति,
अस्याः गौरवेण एव देशवसिनां गौरवम् भवति।।
Q3. शौर्य पर संस्कृत श्लोक कौन सा है?
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥
Q4. श्लोक का शाब्दिक अर्थ क्या है?
श्लोक का शाब्दिक अर्थ ध्वनि, आवाज, शब्द इत्यादि है।
Sanskrit Shlok हिंदी अर्थ सहित [VIDEO]
निष्कर्ष-
आशा करता हूं कि आपको हमारा आज का संस्कृत श्लोक अर्थ सहित (Sanskrit Shlokas With Meaning in Hindi) का यह पोस्ट पसंद आया होगा। आज के लेख में मैंने आपको Sanskrit ke shlok के साथ जानकारी प्रदान किया है। इसके साथ ही अगर आपको इस पोस्ट को पढ़कर कोई सवाल पूछना हो, तो आप कमेंट करके पूछ सकते हैं।